Friday, April 29, 2011

पुराना सामान



अज कई सालों के बाद
उनका सामान जो खोला
कुछ चूडिया निकली,
टूटी सी
जो कभी हाथो में उनके
बजा करती थी
कुछ शंख थे,
सिप्पियाँ भी
बड़े शौक से
इक्कठा करती थी वो
जुराबे निकली थी ऊन की
सांझ ढले गीत गुनगुनाते हुए
अक्सर बुना करती थी वो
दवाइयों की खली बोतलों क बीच से
एक इतरदान मिला है
हलकी सी खुशबू बाकि है अभी भी
और रुक सी गयी है एक लम्हे में
कहने को बेजान है उनकी वो पुरानी घडी
कुछ पुराने ख़त मिले हैं
जिनमे उनके दिन भर का बियोरा है
कुछ गम लिखा है, कुछ यादें भी
और कुछ हसी अभी भी बाकि है
उनकी धुंधली तस्वीरो में
बिक रही हैं उनकी वो यादें आज
कौड़ियो के मोल
कहते हैं पुराना सामान है
किसी काम का नहीं


To my family and the words, said-unsaid which still lingers in the age old air of a heritage.

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